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Friday, April 12, 2013
पुनर्जन्म: एक अध्यात्मिक यात्रा
पुनर्जन्म : एक आध्यात्मिक यात्रा
पुनर्जन्म सदियों से कौतुहल का विषय रहा है। पश्चिम के महान विचारक और दार्शनिक बर्ट्रेण्ड रस्सेल ने अपनी एक किताब में महान वैज्ञानिक अल्बर्ट आइंस्टीन के प्रसिद्ध सिद्धांत थ्योरी ऑफ़ रेलेटीवीटी की व्याख्या करते हुए कहा था कि इसे समझने के लिए मनुष्य को अपना आकार अणु के बराबर सूक्ष्म या ब्रह्माण्ड में विचरण करने वाले किसी भी भीमकाय ग्रह या नक्षत्र के समान करना होगा। इसी प्रकार पुनर्जन्म की चर्चा को को इसी उदाहरण के परिप्रेक्ष्य में देखना होगा। मानव शरीर की रचना करने वोली प्रत्येक कोशिका स्वयं में उतना ही पूर्ण अस्तित्व है जितना कि एक सम्पूर्ण शरीर। ब्रह्माण्ड में ग्रह-नक्षत्र व् इनसे निर्मित आकाश- गंगाए भी ब्रह्माण्ड की जीवित कोशिकाओं एवम उत्तकों की तरह ही व्यवहार करते है। इनसे ही ब्रह्मांड के सम्पूर्ण शरीर की रचना होती है।
मानव शरीर में कोशिकाए निरंतर मरती रहती है तथा इनके स्थान पर नयी कोशिकाओं व् उत्तकों की रचना होती रहती है। चिकित्सा शास्त्र के अनुसार प्रत्येक सात वर्षों के काल चक्र में प्रत्येक पुरानी कोशिका समाप्त हो चुकी होती है तथा इनका स्थान नयी कोशिकाएं ले चुकी होती है। इस प्रकार सत्तर वर्ष की आयु जीने वाला प्रत्येक मानव शरीर अपनी मृत्यु से पहले करीब दस बार अपने शरीर की कोशिकाओं को पूरी तरह से बदल चूका होता है। अंतरिक्ष विज्ञानियों के अनुसार ब्रह्मांड में भी इसी प्रकार की प्रक्रिया के चलते पुराने ग्रह नक्षत्र समाप्त होते रहते है और नए सितारों का जन्म होता रहता है। करोड़ो अरबों वर्षों के जीवन काल के बाद ब्रह्मांड का अस्तित्व भी समाप्त होता रहता है।
आईने के भीतर आईने के प्रतिबिम्ब के सिद्धांत से भी पुनर्जन्म के विज्ञान को समझा जा सकता है। छाया व् प्रकाश की पृष्ठभूमि में प्रतिबिम्ब के भीतर प्रतिबिम्ब हमारे वेद पुरानों में परिभाषित आदि अनंत और द्वैत अद्वेत के सिद्धांत को व्यवहारिक रूप से सिद्ध करते है। करीब एक सदी पूर्व पदार्थ के ठोस स्वरूप पर सवाल उठाते हुए परमाणु से भी सूक्ष्म क्वांटम सिद्धांत का जन्म हुआ, जिसके अनुसार ब्रह्माण्ड में उपस्थित प्रत्येक पदार्थ उर्जा की लहरों से निर्मित है तथा इसमें ठोस जैसा कुछ नहीं है। इसी खोज के सामानांतर जीव विज्ञान में जीन की खोज हुयी है। इसमें यह पाया गया कि मातृ पक्ष और पितृ पक्षके पुरखों से चले आ रहे जीन भविष्य की संतानों की नियति तय करते है। किसी भी दम्पति के वीर्य और अंडबीजों में उपस्थित जीनों की संरचना उनकी भावी संतानों के जीवन का नक्शा है। प्रत्येक जीन स्वय में एक पूर्ण जीवन का ब्लू प्रिंट है जिसमे पूर्वजों की शारीरिक तथा मानसिक सूचनाये छिपी रहती है।
किसी भी व्यक्ति के मातृ व् पितृ पक्ष से प्राप्त पारिवारिक वृक्ष (फॅमिली ट्री ) की शाखाओं का मकडजाल इतना पेचीदा है कि अभी यह तय कर पाना इतना सरल नहीं है कि फॅमिली ट्री की किस शाखा के किस पूर्वज के जीन किस पीढी की संतान को जन्म देंगे। लेकिन जिस प्रकार से जेनेटिक इंजीनियरिंग का विकास हो रहा है इससे निकट भविष्य में यह भी असंभव नही है। क्लोन और डिज़ाइनर बच्चो की अवधारणा को भी इसी से बल मिला है और इसमें कामयाबी भी मिली है। दुसरे शब्दों में ये जीन ही पुरखों के गुण दोष, स्वभाव तथा इनके जीवन इतिहास के वाहक है।
एक प्रकार से ये जीन कंप्यूटर की हार्ड डिस्क या मेमोरी चिप की तरह व्यवहार करते है। जीन के भीतर सुरक्षित डेटाबेस की निष्क्रियता या सक्रियता ही भविष्य की संतानों के स्वभाव व् अन्य गुण दोष तय करते है। कभी कभी पीढ़ी दर पीढ़ी वीर्य और अंड बीजों के माध्यम से यात्रा करते करते इन जीन के नक्शों में उपस्थित जीवित मेमोरी सुप्तावस्था में रहते हुए कभी भी अनुकूल परिस्थितियों में जागृत हो सकती है। यदि किसी व्यक्ति के मातृ या पितृ पक्ष के दशकों या सैकड़ों पीढ़ियों पूर्व किसी पूर्वज में किसी प्रकार भी का मानसिक अथवा शारीरिक विकार रहा है जिनमे अनुवांशिकी रोग व् दूसरे गुण या दोष भी शामिल है , तो पूरी संभावना है कि भावी पीढ़ियों की किसी भी शाखा में जाकर यह अवश्य सामने आएगा। अर्थात जीन की मेमोरी में छिपी पूर्वजो की सूचनाये सक्रिय होकर किसी भी संतान को कभी भी अपने पूर्वजों के इतिहास काल में ले जा सकती है। इसे ही पिछले जन्म की स्मृतियाँ अथवा पुनर्जन्म कहा गया है।
भारतीय सभ्यता में इस विषय पर इतनी गहनता से अन्वेषण तथा अध्ययन हुआ है कि आश्चर्य होता है। इसी के आधार पर धार्मिक ग्रंथों व पुराणों में प्रत्येक स्तर पर जन्म सुधारने की बात कही गयी है। योग व अन्य आध्यात्मिक प्रक्रियाओं व साधनों से मानसिक व शारीरिक विकारों को दूर करने तथा इनके विकास के लिए नियम तथा अभ्यास की विधियों खोजी गयी।इन क्रियाओं का सीधा असर इन जीन के ऊपर पड़ता है तथा ये क्रियाएं आनुवांशिकी दोषों को सुधारने का काम भी कर देती है। यही कारण है कि योग विद्या किसी भी धर्म की सीमा से परे सर्वव्यापी शारीरिक विज्ञान के रूप में स्वीकार किया जा रहा है। यह भी एक सच्चाई है कि भारत की ऋषि परंपरा ने अंतर्मुखी विज्ञानं को जन्म दिया जबकि पश्चिम में इसी बहिर्मुखी खोज को विज्ञानं का नाम दिया गया।
यह भी एक वैज्ञानिक तथ्य है कि औसत बुद्धि का मनुष्य पांच से सात फीसदी मस्तिष्क के भाग को ही सक्रिय कर पाता है। आइंस्टीन जैसे विलक्षण बुद्धि के स्वामी भी अपने जीवन काल में अपने मस्तिष्क के केवल दस से पंद्रह प्रतिशत भाग की सक्रियता का लाभ ले सके। यदि मनुष्य इतना सक्षम हो जाए कि अपने मस्तिष्क के शत प्रतिशत भाग को सक्रिय रूप से प्रयोग करने लगे तो उसमें आलोकिक शक्तियों का संचार होने लगेगा। इश्वर या अवतारी पुरुषों की अवधारणा भी यही से उत्पन्न हुयी है। योग साधना में सहस्रार कमल पुष्प दल की कल्पना या इसका यथार्थ मस्तिष्क की पूर्ण सक्रियता ही तो है। निश्चित रूप से मनुष्य का मस्तिष्क प्रकृति द्वारा मांस के लोथड़े में निर्मित एक ऐसा बायोलॉजिकल उत्पाद है जो कंप्यूटर की सिलिकोन व अन्य धातुओं की बनी हार्ड डिस्क या इसके मेमोरी डिवाइस से भी अधिक कारगर है। जिस प्रकार कंप्यूटर की हार्ड डिस्क या अन्य उपकरणों में छिपे डाटा को बेक-अप फाइल्स या दुसरे तरीकों से एक्सेस किया जा सकता है उसी प्रकार मनुष्य के जीवन की सूचनाएं विभिन्न वेव लेंथ और तरंगों के रूप में जीन्स के माध्यम से पीढ़ी दर पीढ़ी यात्रा करती है। निरंतर अध्यात्मिक प्रयोग व् योग साधना से इन सूचनाओं या डेटाबेस को पुनः जागृत किया जा सकता है। महाभारत में शर शैया पर लेटे भीष्मपितामह द्वारा अपने सौ जन्मों का स्मरण करने का प्रसंग इसी अभ्यास की ओर इंगित करता है।
हमारा अध्यात्मिक इतिहास इसी प्रकार के उदाहरणों से भरा पडा है। इससे यह भी सिद्ध होता है कि आध्यात्मिक रूप से विकसित इस महाद्वीप में इस पर सफल प्रयोग हो चुके है। यह भी विडंबना रही है कि इन प्रयोगों व् इनसे प्राप्त परिणामों की व्याख्या करने तथा इन्हें इनके मूल रूप में सहेजने में हम बहुत हद तक नाकाम रहे है। इस प्रकार पूर्नजन्म को लेकर वैज्ञानिक तथ्यों व् दृष्टिकोण की वजाय एक अन्धविश्वासी धारणा पनपती चली गयी। जबकि पुनर्जन्म अंधविश्वास पर आधारित धारणा मात्र नहीं है। यह एक वैज्ञानिक तथ्य है जिसकी व्याख्या अन्य धार्मिक विषयों की तरह सिरे से ही गलत तरीके से हुयी है।
Friday, August 19, 2011
लोकपाल से ज्यादा जरूरी है कि संविधान को सख्ती से लागू किया जाए. जस्टिस सेन पर महा अभियोग लगाने के लिए किसी लोकपाल की जरूरत नहीं पडी. जरूरत है इच्छाशक्ति की. अन्ना ने एक महत्व पूर्ण मुद्दा उठाया है, लेकिन उन्हें भी संविधान का सम्मान करते हुए संसद की गरिमा का ख्याल रखना चाहिए. बहुत से जिला और ब्लोक स्तर पर अन्ना और बाबा रामदेव के भर्ष्टाचार विरोध की मशाल उन लोगो के हाथों में देखी जा रही है जो मौकापरस्ती और भ्रष्टाचार के पर्याय बन चुके है.
इमानदार लक्ष्य की प्राप्ति के लिए साधन भी इमानदार होने आवश्यक है. बेहतर हो अगर इस आन्दोलन के साथ साथ लोगों को भौतिकवादी सोच से बाहर निकालने के लिए भी एक अभियान चलाया जाए. सरकार के दोहरे मापदंडों वाली जनविरोधी नीतियों पर अंकुश लगना चाहिए. निजी स्वास्थ्य एवम शेक्षणिक संस्थान बंद कराये जाएँ
शर्त राखी जाए कि हरेक मंत्री , ऍम एल ऐ और हरेक सरकारी अफसर के बचे सरकारी स्कूलों व् शेक्षणिक संस्थानों में पढाई करें, यह सुनिशिचित किया जाए कि सभी वी आई पी समेत नेताओं और उनके परिजनों का इलाज विदेशी एवम निजी हस्पतालों के बजाय सरकारी चिकित्सा संस्थाओं में किया जाए. सरकारी कार्यक्रमों में बिसलेरी के वजाय सम्बंधित क्षेत्र के जल स्रोतों का पानी मुख्य अतिथियों को पिलाया जाए.
बड़ी बड़ी बातें करने की वजाय छोटी छोटी बातों पर हम अपने व्यवहार और आचरण का आकलन करें दुनिया खुद व् खुद सुधर जायेगी. मैं अन्ना का मुरीद हूँ लेकिन गलत होता देखकर हम में से कितने लोग है जो अन्ना बनने की हिम्मत करते है. बस के कंडक्टर से टिकट और दो चार रूपये की बकाया राशी मांगने वालों को हेय दृष्टी से हमारे ही साथी देखते है.
अन्ना के आन्दोलन को इसके आगे बढ़ाकर अन्य समस्याओं की ओर भी मोड़ना जरूरी हो गया. कहीं ऐसा ना हो कि चंद इमानदार लोगों द्वारा आरम्भ अभियान की कमान गलत लोगों के हाथ में चली जाए और यह ऐतिहासिक आन्दोलन अपना मकसद खो बैठे.
Wednesday, September 1, 2010
बुढापे का सूनापन
में और मेरे दो साथी जम्मू से वापस बिलासपुर आ रहे थे । पठानकोट से जेसूर पहुँचने पर एक पेट्रोल पंप पर अपनी कार में पेट्रोल भरवाने के लिए रुके। जैसे ही पेट्रोल भरवा कर हम वहां से प्रस्थान करने ही वाले थे कि वहा सड़क के किनारे खडा एक भद्र दिखने वाला करीब साठ वर्षीय व्यक्ति हमारी और बढ़ा। उसने हाथ के इशारे से हमें रोका। वो हमारे पास आया और बड़ी नम्रता से उसने हमारे से नूरपुर के लिए लिफ्ट मांगी। जेसूर से नूरपुर का लगभग १५किलोमीटर का सफ़र है। गाडी में हम तीन दोस्त ही थे । मैं पिछली सीट पर अकेला ही बैठा था । हम तीनों दोस्तों ने आँखों आँखों में एक दूसरे की और देखकर एक सहमती बनायी और उस सज्जन से दिखने वाले व्यक्ति को कार में बिठा लिया । वो पिछली सीट पर मेरे साथ बैठ गया। चंद सेकंडों की खामोशी के बाद एक औपचारिक वार्तालाप शुरू हो गया । पहले उसने हमारे बारे पूछा कि हम कहाँ जा रहे है। उसके बाद जैसा कि अमूमन होता है, मौसम के हालचाल के बाद देश की दुर्दशा और राजनीतिज्ञों के भ्रष्टाचार पर आम तौर पर दी जाने वाली टिप्पणियों के साथ एक दुसरे का व्यक्तिगत परिचय ही हो पाया था कि हम नूरपुर पहुँच गए । नूरपुर जीवन बीमा निगम के कार्यालय में थोडा सा काम होने की वजह से हम भी थोड़ी देर के लिए वहाँ रुक गए । हमारा इरादा काम हो जाने तक वहाँ चाय पीने का था । वो सज्जन हमसे विदा लेकर थोड़ी दूर जाने के बाद वापिस हमारी ओर आये । उन्हें अपनी ओर आता देख हम कयास लगाने लगे कि कहीं इन महानुभाव का इरादा कहीं हमारे साथ आगे चलने का तो नहीं बन गया है। अभी हम किसी नतीजे तक पहुँचते वो सज्जन मेरी ओर मुखातिब होकर बोले क्या आप दो मिनट के लिए मेरी बात सुनेंगे। मैंने अपने साथियों को कहा कि जब तक आप एल आई सी कार्यालय से अपना काम करवाते हैं मैं इन साहेब के साथ बतिया लेता हूँ । मेरे दोनों साथी एल आई सी दफ्तर चले गए । मैं और वो व्यक्ति सड़क के किनारे खड़े हो गए। उन सज्जन ने जो आपबीती मुझे सुनायी उसने मेरे सामने कई सवाल खड़े कार दिए और मैं कई दिनों तक उसके बारे में सोचता रहा। वो सज्जन पठानकोट के डी ऐ वी कॉलेज में इंग्लिश भाषा के प्रोफेस्सर थे। उन्होंने बताया कि उनका इकलौता बेटा इंग्लैंड में इंजिनियर है।आगे की कहानी उसी सज्जन की जबानी बताता हूँ । " मैंने और मेरी बीवी ने बेटे को बड़ी मेहनत और इमानदारी से पढ़ाया इंजीनियरिंग करवाई। हायर एजुकेशन के लिए इंग्लैंड पढने भेजा । पढाई के बाद इंग्लैंड की किसी कंपनी में नौकरी भी मिल गयी। हमपति पत्नी बहूत खुश थे। कम्युनेशन के साधन कम होने के कारण चिठी पत्री ही हमारे हालचाल के संदेशों के आदान प्रदान का एकमात्र साधन था जिसके लिए हमें कई कई दिनों तक इंतज़ार करना पड़ता था । इसी तरह हमारे दिन शान्ति से व्यतीत हो रहे थे कि एक दिन हमें हमारे बेटे की चिठी मिली जिसमे उसने लिखा था कि उसने इंग्लैंड की किसी गोरी लडकी के साथ ब्याह रचा लिया है। आनन् फानन में हुए इस फैसले के लिए चिठ्ठी में माफी मांगकर उसने अपनी नयी नवेली विदेशी बीवी की तारीफ़ के पुल बंधने के साथ अपनी पत्नी के साथ शीघ्र देश आने का वादा किया हुआ था । एक क्षण के लिए झटका सा लगा । लेकिन झूठी सी तसल्ली देकर अपने आप को तो समझा लिया पर अपनी बीवी को क्या तर्क दूंगा यह सोच कर परेशान हो रहा था । किसी तरह उसे भी समझाया लेकिन सदमें से उबरने में हमें बहूत हिम्मत का सबूत देना पड़रहा था। में तो किसी तरह समझौता कर रहा था लेकिन अपनी बीवी की आँखों में बेटे की बहू के लिए बुने गए सपनों को टूटने का दर्द आसानी से देखा जा सकता था । दिन निकलते गए । एक दिन चिठी आई कि हमारे पोता होने वाला है। उसकी मां ने बहू को भारत लाकर यहीं जच्चगी कराने के लिए लिख तो दिया लेकिन मैं जानता था कि यह संभव नहीं है। जैसी कि शंका थी वाही हुआ। चिठी में इंडिया में सुविधा की कमी का रोना रोते हुए बहू की मंशा भी जाहिर कर दी कि वोह भी इंडिया में बच्चा नहीं जानना चाहती है। चिट्ठी में बहू और पोते के साथ जल्दी ही भारत आने का वादा ज़रूर किया था। पोते के जन्म का समाचार भी आ गया लेकिन साल पर साल बीतते गए चिट्ठियों का सिलसिला भी एक औपचारिकता मात्र रह गयी। बीवी उम्र के लिहाज से कम लेकिन बेटे के गम में ज्यादा ही बीमार रहने लगी।इस दौरान बहू के दूसरा पोता भी हो गया। लेकिन फोटो, चिट्ठियों और कुच्छ दिन तक इन्टरनेट पर चेट्टिंग.
और एक दिन अपने बेटे , बहू और पोते के इंतज़ार में उसने दम तोड़ दिया। बेटे को फोन पर इत्त्लाह दी लेकिन मां के मरने पर भी वोह नहीं आ सका। अब कभी कभार फोन पर बात होती है तो जैसे बच्चों को बहलाया जाता है उसी अंदाज में भारत आने की बड़ी भारी इच्छा होने के बावजूद समय की कमी का रोना , कभी कभी नौकरी की मजबूरियाँ आदि आदि। मेरे पास अपना मकान है। थोड़ा बहुत पैसा भी संजो कर रखा है। लेकिन अपने अकेलेपन का कोई इलाज़ नहीं है। पुराने संगी साथी अपनी अपनी घर गृहस्थी में मशरूफ हैं । कभी कभार किसी पुराने साथी के घर चला भी जाता हूँ तो उनके बेटे और बहुएं अवाछित अतिथि की तरह व्यवहार करते हैं तो अजीब सा लगता है। अब तो किसी के घर जाने का मन भी नहीं करता है। यह तो है सारी कथा लेकिन अब असल मुद्दा यह हैकि आप से बात करके लगा कि आप मेरी स्थिति को समझेंगे। यदि आपकी नज़र में कोई ऐसी ज़रुरत मंद औरत हो जो मेरे साथ रह सके तो मैं अपना सब कुछ उसके नाक करने को तैयार हूँ। यदि कोई परित्यक्त या बच्चों वाली vइध्वा भी हो तो में उसके बच्चों को पढ़ाने और अन्य जिम्मेवारी लेने को भी तैयार हूँ। इस उम्र में मुझे शारीरिक नहीं बल्कि ऐसे साथी की जरूरत है जो मानसिक रूप से मेरा साथ निभा सके। "
इतनी देर में मेरे दोनों साथी अपना काम करवाकर आ गए। मैंने संक्षिप्त में उन्हें सारी बात सुनायी । मैंने और मेरे साथियों ने कोरा सा आश्वासन देकर उस से रुखसत ली । हालांकी रास्ते में मेरे साथी चटकारे ले ले कर उसकी हंसी उड़ा रहे थे लेकिन उसके अकेलेपन के अहसास ने मुझे झकझोर सोचने पर मजबूर था। उसकी आँखों का सूनापन किसी को भी तन्हाई का अहसास करवा सकता था। यह सब लिखते समय भी मेरी आँखों केसामने उस शख्स की तन्हाई छलक रही । क्या हम अपने बच्चों से ज्यादा ही उम्मीद नहीं लगा रखते है।
और एक दिन अपने बेटे , बहू और पोते के इंतज़ार में उसने दम तोड़ दिया। बेटे को फोन पर इत्त्लाह दी लेकिन मां के मरने पर भी वोह नहीं आ सका। अब कभी कभार फोन पर बात होती है तो जैसे बच्चों को बहलाया जाता है उसी अंदाज में भारत आने की बड़ी भारी इच्छा होने के बावजूद समय की कमी का रोना , कभी कभी नौकरी की मजबूरियाँ आदि आदि। मेरे पास अपना मकान है। थोड़ा बहुत पैसा भी संजो कर रखा है। लेकिन अपने अकेलेपन का कोई इलाज़ नहीं है। पुराने संगी साथी अपनी अपनी घर गृहस्थी में मशरूफ हैं । कभी कभार किसी पुराने साथी के घर चला भी जाता हूँ तो उनके बेटे और बहुएं अवाछित अतिथि की तरह व्यवहार करते हैं तो अजीब सा लगता है। अब तो किसी के घर जाने का मन भी नहीं करता है। यह तो है सारी कथा लेकिन अब असल मुद्दा यह हैकि आप से बात करके लगा कि आप मेरी स्थिति को समझेंगे। यदि आपकी नज़र में कोई ऐसी ज़रुरत मंद औरत हो जो मेरे साथ रह सके तो मैं अपना सब कुछ उसके नाक करने को तैयार हूँ। यदि कोई परित्यक्त या बच्चों वाली vइध्वा भी हो तो में उसके बच्चों को पढ़ाने और अन्य जिम्मेवारी लेने को भी तैयार हूँ। इस उम्र में मुझे शारीरिक नहीं बल्कि ऐसे साथी की जरूरत है जो मानसिक रूप से मेरा साथ निभा सके। "
इतनी देर में मेरे दोनों साथी अपना काम करवाकर आ गए। मैंने संक्षिप्त में उन्हें सारी बात सुनायी । मैंने और मेरे साथियों ने कोरा सा आश्वासन देकर उस से रुखसत ली । हालांकी रास्ते में मेरे साथी चटकारे ले ले कर उसकी हंसी उड़ा रहे थे लेकिन उसके अकेलेपन के अहसास ने मुझे झकझोर सोचने पर मजबूर था। उसकी आँखों का सूनापन किसी को भी तन्हाई का अहसास करवा सकता था। यह सब लिखते समय भी मेरी आँखों केसामने उस शख्स की तन्हाई छलक रही । क्या हम अपने बच्चों से ज्यादा ही उम्मीद नहीं लगा रखते है।
Sunday, August 1, 2010
फ्रेंडशिप डे एंड फ्रेंडशिप
कल सुबह टी वी ऑन किया तो सबसे पहली खबर जो चल रही थी वो दिल्ली के रईसजादों के बिगडैल नवयुवकों और युवतियों द्वारा शराबी हालत में अपनी वोक्स वैगन कार सड़क किनारे खड़े एक डम्पर से टकराने के बाद पुलिस कर्मी और मिडिया के लोगों के साथ बदसलूकी करने के बारे में थी। अधनंगी लड़कियों को उनके साथियों के साथ जिस हालत में दिखाया जा रहा था उस से किसी भी इज़तदार आदमी की नज़रें झुक सकती थी। लड़के जहां देख लेने की धमकी देते हुए गन्दी गालियाँ बक रहे थे , वहीँ एक लड़की प्रेस फोटोग्राफर को दो कौड़ी की औकात वाला कह रही थी। (काश वो अपनी औकात भी बता देती और यदि उनके घरवालों को ज़रा सी भी शर्म हया हो तो वो भी अपने गिरेबान में झाँक कर देखने का प्रयास करें) । कुछ देर बाद एक और महँगी गाडी आती है और वो लोग उसमें बैठकर वहां से खिसक जाते हैं । पुलिस भी मुंह ताकती रह जाती है। पुलिस करे भी तो क्या करे? अगर उन्हें पकड़ भी ले तो ऊंची रसूख वाले इन लड़के और लड़कियों के माँ बाप अपने नौनिहालों को तो छुडा ही लेंगे पर उन्हें पकड़ने वाले पुलिस कर्मी की शामत आ सकती है.
दूसरी खबर अखबार में पढ़ी कि शिमला के मशहूर रिज मैदान पर चंडीगढ़ से घूमने आये कुछ लड़के और लड़कियों ने शराब के नशे में धुत होकर खूब हंगामा किया । राहगीरों के साथ बदसलूकी की। इसके चलते एक लड़की को हवालात की हवा भी खानी पड़ी जबकि उसके साथी मौके से भागनिकले।
तीसरी खबर आज सुबह देखी जिसमें पुणे के एक कॉलेज के ऍम बी ऐ के चार सौ छात्रों ने एक फार्म हॉउस में पार्टी का प्रोग्राम बनाया जहां सभी लड़कों और लड़कियों ने जम कर शराब पी और रात भर होस्टल से बाहर रात गुज़री।
ये सब फ्रेंडशिप डे के नाम पर हो रहा था। क्या यही फ्रेंडशिप के मायने हैं?
दूसरी खबर अखबार में पढ़ी कि शिमला के मशहूर रिज मैदान पर चंडीगढ़ से घूमने आये कुछ लड़के और लड़कियों ने शराब के नशे में धुत होकर खूब हंगामा किया । राहगीरों के साथ बदसलूकी की। इसके चलते एक लड़की को हवालात की हवा भी खानी पड़ी जबकि उसके साथी मौके से भागनिकले।
तीसरी खबर आज सुबह देखी जिसमें पुणे के एक कॉलेज के ऍम बी ऐ के चार सौ छात्रों ने एक फार्म हॉउस में पार्टी का प्रोग्राम बनाया जहां सभी लड़कों और लड़कियों ने जम कर शराब पी और रात भर होस्टल से बाहर रात गुज़री।
ये सब फ्रेंडशिप डे के नाम पर हो रहा था। क्या यही फ्रेंडशिप के मायने हैं?
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