Wednesday, June 30, 2010
ऑनर किलिंग और मास ऑनर किलिंग
जिस तरह पिछले कुछ वर्षों से औंनेर किल्लिंग के मामले सामने आ रहे हैं उससे ऐसा लगता है मानो अचानक सारा राष्ट्र चिंतित हो गया है। इस पर क़ानून में संसोधन जैसी बातें भी हो रही हैं। खानदानी आन-बानऔर परिवार की इज्जत के नाम पर क़त्ल करने की सामंत वादी प्रवृति नयी नहीं है। लेकिन पिछले कुछ सालों में मिडिया के अधिक सक्रिय होने तथा मीडिया दवारा इसके लिए ऑनर किल्लिंग जैसा नया शब्द गढ़ने के बाद इन मामलों में लोगों का ध्यान आकर्षित हुआ है । हालांकि अब ऑनर किल्लिंग के लिए वैकल्पिक शब्द की तलाश के साथ यह शब्द स्वयंव चर्चा का विषय बन गया है । केंद्रीय क़ानून मंत्री ने भले ही इस पर अंकुश लगाने के उद्देश्य से सख्त कानून बनाने की वकालत की हो लेकिन इसके पीछे के मनोविज्ञान को समझे बगैर कोई भी क़ानून कारगर सिद्ध होने वाला नहीं है । यदि परिवार या खानदान की इज्जत के सवाल पर किसी परिवार द्वारा अपने ही परवार के किसी सदस्य का क़त्ल किसी भी कीमत पर करना औंनेर किल्लिंग है तो जाति, धरम, समुदाय या क्षेत्रवाद के नाम पर ttdहोने वाले नरसंहार , दंगे-फसाद और कत्ले आम की वारदातों को किस पर्सेप्तिवमें देखा जाना चाहिए । यह ऑनर किल्लिग़ का विस्तार ही तो है , क्या इसे मॉस ऑनर किल्लिंग की संज्ञा देना उचित नहीं होगा । हमारी शिक्षा तथा परम्पराओं के मौखिक और लिखित इतिहास ने ऑनर किल्लिंग को आन बाण और शान के साथ जोड़ कर हमेशा से ग्लोरिफाई किया है। समाचार पत्रों व् टेलीविजन इन घटनाओं को देखकर गुनाहगारों को कोसने वाले अधिकाँश लोग अपनी बारी आने पर इन्ही लोगों के पक्ष में खड़े दीखते हैं। सदियों से आन-बान-शान की कबीलाई सोच के चलते इसे अलग नज़रिए से देखा जाता रहा है । लेकिन मिडिया द्वारा इसके लिए गढ़ेगए नए शब्द ऑनर किल्लिंग ने थोडा सा नज़रिया बदलने की संभावना पैदा की है। अफ़सोस है की समाधान की बजाये बुद्धिजीवी वर्ग इस्ले शाब्दिक अर्थों में उलझ कर इसके लिए वैकल्पिक शब्द पर ज्यादे बहस कर रहा है। जबकि इस पारिवारिक अथवा सामाजिक मॉस हिस्टीरिया की बीमारी के इलाज के लिए कानून के संशोधन से अधिक स्वस्थ शिक्षा ढाँचे की है। क्या इतिहास में ग्लोरिफाई की गयी ऐसी गाथाओं को इतिहास में ही दफ़न करने का वक्त नहीं आ गया है?
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